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पाठ्यक्रम की समालोचना और मत
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प्रौढ, हेमचन्द्रकृत है। वर्ष ४ में मैथिलीपरिणयनाटक, नैषध के कुछ सर्ग या पाश्र्वाभ्युदय और मृच्छकटिक प्रकरण संपूर्ण बढाना चाहिए ।
महानुभावों ! बालकक्षा से लेकर शास्त्रिय कक्षा तक के बनारस के दि० जेन पाठयक्रम को विचार कर भने विद्यार्थियों के हित के लिए उन को सर्वतोमुखी उदार व्यापक विद्वान् बनाने की ही भावनासे कुछ ग्रन्थ बढाण हैं और कुछ परिवर्तित भी किये हैं। जो ग्रंथ मैंने लिखे है वे प्रायः सभी प्राप्य हैं और पूर्व पाठ्य ग्रन्थ के साथ रखने के लिए ही, न कि पूर्वग्रन्थों को निकाल कर, रखे हैं। मेरी इस पाठ्यक्रम प्रणाली और पहिले की सूचनाअनुसार छात्र को योग्य अध्यापक पढावे, तो मुझे विश्वास है कि पढने वाला छात्र न्याय व्याकरण काव्य नाटक अलङ्कार छन्द और धर्मशास्त्र में योग्य विद्वान् हो सकता और जैनधर्म की सेवा कर सकता है । दि० जैन विद्वान मेरे इस पाठ्यक्रम पर संपूर्ण गंभीर विचार कर वनारस में किये हुए नवीन पाठ्यक्रम में योग्य सुधार करेंगे और अपनी गुणग्राहिता उदारता का परिचय देवेंगे; सी आशा करता हुआ मैं यहीं पर लेख को खत्म करता हूं ।
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