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पाठ्यक्रम की समालोचना और मत
आती है। इसलिए 'प्रवेशिका' कक्षा के तीसरे वर्ष से न्याय विभाग में श्वेताम्बरों के ग्रन्थ भी नियतरूप में अथवा विकल्परूप में अवश्य रखने चाहिये ।
४-व्याकरण और साहित्य जैसे विषय में जहाँ हो सके जैनग्रन्थ ही पाठ्यक्रममें रखने चाहिये । उस विषय का योग्यग्रन्थ जैनों के दिगम्बर, श्वेताम्बर या स्थानकवासी किसी फिरके के विद्वान् का हो, उसे रखना चाहिये । अगर उस विषय का कोई ग्रन्थ दिगम्बरों का उपलब्ध नहीं है तो अजैन ग्रंथ की अपेक्षा से श्वेताम्बर या स्थानकवासी जैन ग्रन्थ को पहिले स्थान देना चाहिए । उसी तरह श्वेतांबर और स्थानकवासिओं को भी अपने पाठ्यक्रम में अजैनग्रन्थ की अपेक्षा दिगम्बर जैन के योग्य ग्रन्थ को पहिले पास करना चाहिए । जैसे लघु और सिद्धान्त कौमुदी व्याकरण के स्थान पर हैमशब्दानुशासन लघुवृत्ति और बृहवृत्ति योग्यतम होने से पढाने चाहिये ।
५-न्याय के वादक ग्रन्थों में नैयायिक पेशेषिक सांख्य वेदान्त मीमांसक बौद्ध और चार्वाक दर्शन का काम विशेष पडता है। अतः तत् तत् दर्शनों के मूल ग्रन्थ पढने से छात्रों में हर एक दार्शनिक ग्रन्थ लगाने की व्युत्पत्ति और ताकत आती है। अतः अन्य दर्शन के ग्रन्थ पढने में भी उपेक्षा नहीं होनी चाहिए । जहां तक होसके पढाने वाला जैनतत्त्व द्वेषी नहीं होना चाहिए ।
६-जो ग्रंथ उपलब्ध हों और मुद्रित हों उन्हीं को पाठ्यक्रम में रखने चाहिये । पाठ्यग्रन्थ नोट, टिप्पण प्रस्ता
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