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अर्धमागधी और प्राकृत
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यूनिवर्सिटियों ने इसे एक स्वतन्त्र स्थान दे रखा है । बंबई यूनिवर्सिटी इस दिशा में अधिक आकृष्ट हुई है । इस यूनिवर्सिटी में प्रतिवर्ष ३०० से अधिक छात्र इस भाषा में परीक्षा देने बैठते हैं । फलस्वरूप गुजरात और दक्षिण में इस भाषा के बहुतेरे पण्डित हैं ।
इसके प्राथमिक विद्यार्थी को यह समझ लेना चाहिये कि, प्राकृत और अर्द्धमागधी के व्याकरण के नियम बहुत कुछ एकसे है । इसलिये एक दूसरे के साधन एक दूसरी भाषा के अध्ययन में काम आ सकते हैं। व्याकरण-ग्रन्थ में आचाय हेमचन्द्र का प्राकृत-व्याकरण सुन्दर, सर्वोपयोगी और व्यापक माना जाता है । यह सूत्रबद्ध संस्कृत भाषा में है । इसके अध्ययन से प्राकृत, शौरसेनी, मागधी, पैशाची चूलिका पैशाची और अपभ्रंश का बहुत सुन्दर ज्ञान हो जाता है। इन्हीं हेमचन्द्रसूरि का कुमारपालचरित्र काव्य भी बनाया हुआ है, जो भट्टी काव्य का अनुसरण करता है । इसके अतिरिक्त प्राकृत प्रकाश, प्राकृतसर्वस्व, संक्षिप्त सार, प्राकृत-व्याकरण, षड्भाषा-चन्द्रिका, प्राकृत- लक्षण और प्राकृतानुशासन प्रभृति प्राचीन व्याकरण ग्रंथ भी उपलब्ध हैं। नवीन व्याकरण ग्रन्थों में डा० पिशल का प्राकृत ग्रामर, डा० बनारसीदास जी का अर्द्ध-मागधी रीडर, श्रीयुत रत्नचन्द्र जी का जैन सिद्धांत कौमुदो, अर्द्धमागधी शब्द-धातु रूपमाला, प्राकृत- पाठमाला, प० बेचरदास का प्राकृत व्याकरण, प्राकृत-मार्गोपदेशिका और प्राकृत रूपमाला तथा प्रो० बुलमर की प्राकृत प्रवेशिका आदि ग्रन्थ उपयुक्त हैं।
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