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अर्थ मागधी और प्राकृत
और लालित्य ह; अतएव यह शिशुनाग, कुविन्द, शातवाहन आदि भारतीय सम्राटों के शासन काल में राज भाषा बन सकी थी। यह सेकड़ों वर्षांतक भारत की राष्ट्र भाषा थी।
कुछ विद्वानों का तो यहां तक कहना ह कि. वैदिक भाषा से भी इस भाषा का उत्पत्तिकाल बहुत पुराना है। क्यों कि वैदिक और प्राकृत-भाषा में कितनी ही जगह बहुत साम्य दिखता हैं । जैसे अन्य व्यञ्जन का लोप हो जाना, संयुक्ताक्षर के पूर्व के अक्षर का हस्व होना, संयुक्त 'य' और 'र" का लोप होना, संयुक्त व्यजनों के मध्य में स्वर का आगम हो जाना, चतुर्थी के स्थान पर षष्टी विभक्ति का होना, द्विवचन में आकार हो जाना और 'ऋ' का “उ” हो जाना इत्यादि । वर्तमान लौकिक संस्कृत पर भी प्राकृत ने प्रभाव डाला है । प्राकृत और अर्थ मागधो के कितने ही शब्द संस्कृत में घुस पडे हैं। कुछ भाषा शास्त्रियों का यह मत है कि, मब से पहले व्याकरणादि से अनिरुद्ध प्राकृत भाषा थी; अनन्तर पाणिनि आदि के व्याकरणादि ग्रन्थों से निगृहीत होकर, जब वह संस्कारयुक्त और नियत हुई, तब उसमें से संस्कृत भाषा का उदय हुआ। राजा भोज, कवि हाल, वाक्पतिराज, जयवल्लभ, राजशेखर, महेश्वरसूरि और वज्जालग्ग प्रभृति प्रमुख पुरुषों और स्त्री . कवियों ने सरस्वती कंठाभरण, गाथा सप्तशती, गउडवहो, कर्पूरमञ्जरी, बालरामायण और
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