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छपा हुआ अनूठा जैन साहित्य
-: ३५: - छपा हुआ अनूठा जैन साहित्य
साहित्य वह वस्तु है जो एक बहुत बड़े परिवर्तन को कर लेने में समर्थ है । ऐसे साहित्य से हो पूर्वकालीन भारत हरएक विषय में आगे बढ कर अन्य देशों का पोषाक और सिरताज हुआ था। इस प्रकार के साहित्य से ही राम, कृष्ण, बुद्ध, कालिदास, सिद्धसेन दिवाकर, समन्तभद्राचार्य, विक्रमभोग, कुमारपाल, वस्तुपाल, तेजःपालादि हर कलामें वीर धीर और विद्वान् बने थे ! भाज अमरिका भी पौलिक विज्ञान समृद्धि में आगे बढ़ा है। इस का कारण भी उस देश में वैसे साहित्य का प्रचार ही है । साहित्य शब्द से यहां यावदविद्या कलाविज्ञान विषयक ग्रन्थों का अर्थ में लेता हूं । जैन धर्म में त्याग कीवैराग्य की प्रधानता होने से कई राजा महाराजा, कवि, विद्वान्, सेठ लोग भी विरक्त होकर मुनिवृत्ति को स्कीकार कर संसार को सभी उपाधियों से दूर हुए और शान्त चित्त से गहरे विचार पूर्वक आत्मशोधन व शुद्ध साहित्य का मनन और निर्माण करना उनका मुख्य व्यवसाय हुआ ! यही कारण है कि ऐसे पहुंचे हुए महात्मा और विद्वानों के हाथ से ही प्रायः जैनों के मुख्य दोनों सम्प्रदायों में हर एक विषय का प्रत्येक प्रचलित भाषा में अनूठा साहित्य
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वीर, बीजनोर, वर्ष ८, अङ्क १, २, ३ ।
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