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अर्ध-मागधी और प्राकृत
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प्राचीन कोष-साहित्य में केवल धनपाल कवि की पाइअलच्छीनाममाला और हेमचन्द्र की देशीनाममाला ही मिलती हैं। नवीन कोषों में सर्वोपयोगी और सुन्दर कोष न्याय व्याकरण-तीर्थ प्रो० हरगोविन्ददास जी का पाइअसह-महण्णवो है । इममें प्राचीन और अर्वाचीन अर्द्धमागधी तथा प्राकृत आदि के ७५००० शब्द प्रमाणों के साथ संगृहीत हुए हैं। इसके अतिरिक्त अभिधान राजेन्द्र और जैनागम-शब्दसंग्रह भी उल्लेखनीय हैं।
काव्यों में कुमारपाल चरित, पउम चरिय, महावीर चरियं. गउबडहो; सुपासनोह चरियं, गाथा सप्तसती; नाटक में मृच्छकटिक, कर्परमारी-(गद्यमें) इसके सिवाय वसुदेव हिन्दी काव्य और कल्पसूत्र आदि ग्रन्थ भी उल्लेखनीय हैं ।
छन्दोग्रन्थमें गाथालक्षण, प्राकृत-पिंगल-सूत्राणि, नन्दीलाढ्य, सअंभूछन्द, बृत्तदर्शन, वृत्तमुक्तावली आदि ग्रन्थ दर्शनीय हैं।
अति प्राचीन प्राकृत, आर्ष प्राकृत और मागधी आदि भाषाओं के ज्ञान के लिए सब से पुराना और महत्व का साहित्य आचाराङ्ग प्रभृति जैन आगम है । इस भाषा में पाम्व प्राप्त करने के लिए जैनागम का अध्ययन नितान्त आवश्यक है।
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