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अर्ध-मागधी और प्राकृत
अर्द्ध मागधी का नहीं । श्रीजिनदास नामके एक प्राचीन विद्वान् ग्रन्थकार कहते हैं-'अर्द्ध-मागधी भाषा अठारह देशोंकी भाषाओं से बनी है।' यानी ढाई हजार वष पूर्व इस भाषा का प्रचार अठारह देशों के लोक-व्यवहार और साहित्यमें थाः इसी लिए दीर्घ तपस्वी भगवान् महावीर स्वामो जैसे दिव्य पुरुषने भी इसी लोकप्रिय भाषामें उपदेश देकर जगत्को सन्मार्ग दिखाया। भगवान् महावीर के मुख्य मुख्य शिष्य इन्द्रभूति, अग्निभूति और सुधर्म प्रमुख महर्षियों ने तथा उनके भी शिष्य प्रशिष्योंने कडों वर्षोंतक इसी भाषामें उपदेश दिये और शिष्ट साहित्यकी रचना की। आज जैनों के जितने भी मूल ग्रन्थ, आगम, सूत्रग्रन्थ आदि उपलब्ध हैं, उनकी भाषा यही अर्थ मागधी है। इस भाषामें स्वभावतः ही माधुर्य, लालित्य और व्यापकत्व है। इसीलिये आचाई हेमचन्द्र ने इनके लिए काव्यानुशासन में "अकृत्रिमस्यादुपदा" विशेषण दिया है और वाग्भटने खुले मुंह तारीफ की है । ____ आर्ष ( ऋषिभाषित ) और जैनप्राकृत इसी अर्ध मागधी के नामान्तर हैं । डा० याकोबी आदि भाषातत्त्वविद्
१ अठा सदेसी भाषा णिययं वा अद्रमागहं ।" निशीथचूर्णि - २ अद्धमागहाए भासंए भासंति अरिहा धम्मं । ... तएण समणं भगवं, महावीरे कूणिअस्स भिभिसारपुत्तस्स" अद्धमागहीए भासए भासंति ।'उववाइयसुत्तं ।
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