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अर्ध-मागी और प्राकृत
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अर्द्ध-मागधी और प्राकृत*
कण्ठ-तालु आदि के संगठन से मुख द्वारा भाषा (शब्दोच्चारण) की उत्पत्ति होती है। भाषा का प्रयोजन मनोगत भावों को व्यक्त करना है । नैयायिक शब्द को आकाशका गुण मानते हैं, साङख्यकार कारण मानते हैं और जैन आदि भाषावर्गणा नामक विशिष्ट पुद्गलपरमाणुओं का समूहकार्य मानते हैं।
विभिन्न काल में कितनी भाषाएं भारत में उत्पन्न हुई, जिनमें थोडी ही भाषाओंने साहित्य और व्यवहार में चिरकालता पाई । जिस भाषामें सरलता और व्यापकता होती है, वह लोक-व्यवहार की भाषा होती है और जिससे माधुर्य तया लालित्य आदि गुण होते हैं, वह साहित्य की भाषा होती है, एवम् उभय गुण विशिष्ट भाषा व्यावहरिक और साहित्यक दोनों ही होती है । ऐसी ही भाषाओं में अर्द्ध-मागधी भी एक है।
___ आज से ढाई हजार व पूर्व अर्द्ध-मागधी का प्रचुर रूप से प्रवार था । मगध, बंगाल, बिहार और उतर हिन्दुस्तान के करोडों मनुष्यों को यह बोल चालको भाषा थो । मागधी भाषा का उत्पत्तिस्थान मगध देश है; पर
* गंगा-सुलतानगंज, वर्ष ५. तरंग ४६ ।
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