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महाकवि वागभट के जैन ग्रन्थ की व्याख्या में गडदड
जमाना परीक्षा का और पोल खोलने का आया है और अब ऐसे लोगों को गडबड नहीं चल सकती है । इसीलिए ऐसे लोगों को अब निष्पक्ष होकर स्वपर कल्याणकारी कार्य करना चाहिए । इस टीका के प्रकाशक श्रीयुत मोतीलाल बनारसीदास जी से भी मेरी प्रेरणा है कि वे इस टीका के लेखक पं० ईश्वरीदत्त जी को एक पत्र लिखकर इस ग्रन्थ में की हुई भूलों का सुधारा करवा कर आत्मानन्द महासभा, अम्बाला, या दुसरी कोई जैन संस्था में और साहित्यिक पत्रों में क्षमायाचना के सक्ति भेज दें। ऐसा करने से साहित्य में बिगाड होते हुए रुकेगा और जेन विद्वानों को सन्तोष होगा।
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