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भगवान् महावीर
थी, उसमें देश-कालानुसार सुधार किया । आत्मधर्म की घोषणा की। धर्म के निमित्त यज्ञादि में हजारों पशु पक्षियों की हिंसा, आम तौर पर होती थी. उसका घोर विरोध किया । इनके प्रचण्ड आन्दोलन से सारे भारत में सामाजिक, धार्मिक क्रान्ति मच गई। काफी सुधार हो गया । भगवान् महावीर ने जाति-भेद को महत्त्व नहीं दिया । रूढियों और कुरीतियों का निराकरण किया । शूद्रों ( चाण्डालो) तक को भी महावीर ने शिष्य बनाकर पवित्र महात्मा वनाया । धर्म का स्थान आत्मा की पवित्रता है । बाह्य साधन, धर्म के एकान्त साधक और बाधक नहीं हो सकते हैं। हरएक प्राणी धर्म का अधिकारी है, ऐसा उनका उपदेश था ।
महावीर के उपदेशों में अजब ताकत थी, जिससे उन्होंने इन्द्रभूति ( गोतमस्वामी ) प्रभृति जैसे जगत् प्रसिद्ध ४४०० ब्राह्मण विद्वानों को वेदो का यथार्थ अर्थ समझाकर अपना शिष्य किया था । बडे बडे राजाओं और अधिकारियों को साधु बनाया था। चारों वर्ण के साधु और गृहस्थ महावीर के शिष्य थे। जैसे शूद्रों में मेतार्य और हरिकेशि आदि । वैश्यों में शालिभद्र आदि । क्षत्रियों में - अक्षयकुमार, मेघकुमार प्रभृति । ब्राह्मणों में- इन्द्रभूति, सुधर्मा आदि ।
ये इनके साधु शिष्य थे और ढंक, गोभद्र, श्रेणिक, अवड आदि क्रमश: शूद्र, वैश्य, क्षत्रिय और ब्राह्मण जाति के गृहस्थ शिष्य थे । भगवान् महावीर ने स्त्रियों को भी पुरुषवत् धर्म के अधिकार दिए थे ।
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