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१६६ महाकवि वाग्भट के जन ग्रन्थ की व्याख्या में गडबड
इति सत्ता १९७९ प्रतीयते
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प्रभाचन्द्रमुनीन्द्रविरचितप्रभावक चरित्रतो वाग्भटस्य विक्रमसम्वत्सरे 1123 A. 1). स्फुटं श्रीमद्वाग्भटदेवोऽपि जीर्णोद्धारमकारयत् । शिखीन्दुरवि ( १२१३ ) वर्षे च ध्वजारोपं व्यधापयत् ॥ इत्यमि प्राभाविकचरित्रतो वागभटस्य सत्ता १२१३ विक्रम संवत्सरे 1137 A D प्रतीयते ॥
वाग्भटालङ्कार, निर्णय सागरकी आवृति चौथी, पृष्ट १ २ ।
इसके सिवाय प्रबन्धचिन्तामणि प्रभावकचरित्र और संस्कृत द्वयाश्रय ( हेमचन्द्राचार्यकृत) आदि जैसे ऐतिहासिक ग्रन्थों से भी साफ मालूम होता है कि वाग्भट एक कट्टर जैन थे । यह बात स्वयम् इसी वागभटालङ्कार में भी प्रतीत होती है । इनके उदाहरण भी जैन तीर्थकरों की भी भक्ति से पूर्ण है । देखिये मैं कुछ पाठकों के सन्मुख रखता हूं:
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श्रियं दिशतु वो देवः श्रीनाभेयः जिनः सदा । मोक्षमार्ग सदा वृते यदागमपदावली ॥ वाग्भटालंकार | पृष्ठ १ ।
१. पुराने मन्दिरों को ठीक करने को जीर्णोद्धार कहते हैं । वागभट ने शत्रुंजय (जैनों का बहुत बडा तीर्थ ) के बहुत मन्दिरों का जीर्णोद्धार करवाया था । गुजराती भाषा की एक प्राचीन पुस्तक में लिखा है कि 'बाहs मन्त्रीये चौंदमारे तीर्थे कर्यो उद्धार | बार तेत्तर (१२१३) वर्षमारे वंश श्रीमाली सार हो जिनजी.........' । नवाणुं प्रकार की पूजा पृ० २५९ ।
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