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मंडपदुर्ग और अमात्य पेथड
और धार्मिक होने से थोडे ही समय में पेथडकुमारने राजा और प्रजाको प्रेम से जीत लिया। राज्यको नुकसान नहीं पहुंचाते हुए प्रजा का हित करनेकी कला उसको आती थी । वह दुष्ट रिश्वत खानेवाले ऑफिसर और आततायोओंका पूरा बिरोधी था । मंत्री पेथडकुमार ने प्रजाका टेक्स ( कर ) बहुत कम कर दिया और प्रजा की आर्थिक व धार्मिक उन्नतिके कई साधन बनाये, उसके मंत्रित्वमें राज्यको खजाना और यश खूब बढा ।
ईश्वर-भक्ति और युद्ध-वीरता
पेथडकुमार बड़ा बहादुर था । साथ साथ धर्मात्मा भी पूरा था । कर्णावती का प्रतापी राजा सारंगदेव मालवे को स्वाधीन करने के लिये फौज लेकर मांडवगढ पर चढ आया । राणा जयसिंहदेव घभराया । उसने मंत्री पेथडकुमार को बुलाने आदमी भेजा । उस वक्त वह जिनपूजा कर रहा था। उसकी स्त्री ने उत्तर दिया कि पूजा पूरी किये विना नहीं आवेंगे । दो तीन बार आदमी भेजने पर भी जब मंत्री नहीं आये, तब राजा स्वयं बुलाने आया । जिनमन्दिर में खुद गया। उस समय उसका नोकर भगवान को चढानेके लिए पुष्प दे रहा था । उनके स्थान पर राजा बैठकर मंत्रीको पुष्प देने लगा । मंत्रीश्वर पूजा में तल्लीन था । प्रारंभमें उसका ध्यान नहीं गया। थोडी देरके बाद उसने सामने देखा तो कपने मालिक राजाको देख कर वह शरमींदा हुआ । राजाने धन्यलाद दिया और कहा कि
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