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मंडपदुर्ग और अमात्य पेड
के दान की थोडी सूची यहाँ पर देते हः
१ सवा करोड रुपये दानशाला में खर्च किए । २ राजा जयसिंह के माँगने पर पेथड ने अपनी चित्रावेल और कामकुम्भ राजा को दिये ।
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३ गुरु से सम्यक्त्ववत लेने के समय १२५००० एक लाख पच्चीस हजार का दान दिया। गुरु के प्रवेशोत्सव में ७२००० गीनी खर्च की ।
व्यापार के कारण भारत में पहले कितनी लक्ष्मी थी ? यह इस मंत्रीश्वर और वस्तुपाल तेजःपालादि के चरित्र से सुविदित हो सकता है । पहले दूसरे देशों का धन भी भारत में आता था, परन्तु अब तो उल्टा जा रहा है । वह स्वतन्त्रता व अनुकूलता नहीं रही ।
धार्मिक जीवन
पेथड को इतना बडा व्यवसाय और राजखटपट होने पर भी वह धर्मकृत्य यथायोग्य करता था । अर्थ और काम पुरुषार्थ से भी वह धर्म पुरुषार्थ को विशेष महत्व का समझता था । ईश्वर के भजन में वह बहुत शौक रखता था । यही कारण है कि उसने धार्मिक कार्यों में लाखों नहीं करोडों रुपये खर्च किये हैं । हजारों मनुष्यों को साथ ले कर अपने खर्च से उसने गिरनार, आबू,
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