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मंडपदुर्ग और अमात्य पेथड .
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सत्ताधारी होने पर भी सरस्वतो देवी उस पर बडी प्रसन्न थी। अतः वह साहित्यवृद्धि के लिए योग्य विद्वानों को प्रार्थना कर नवीन ग्रन्थ बनवाता था । तत्कालीन और पूर्वकालीन अनेक उत्कट ग्रन्थों की अनेक कॉपीयाँ करवा कर उसने भडोंच वगेरह पृथक् पृथक् शहरों में सात पुस्तक भंडार स्थापित किये थे, जो माहित्य की दृष्टि से बडे महत्त्व के थे। उसने कौन कौन ग्रन्थ बनाए इसका पता हमको अभी तक लगा नहीं है । कई विद्वानों को वह राज्य और अपनी तरफ से मदद करता था ।
दान सत्ताधारी धनाढ्यों में दान का गुण बहुत विरल दिखने में आता है । इसी लिए कवि विद्वान् लोग कहते
"शतेषु जायते शूरः सहस्त्रेषु च पण्डितः ।
वक्ता दशसहस्त्रेषु दाता भवति वा नवा ॥" पर पेथडकुमार एक अपवाद था। दान करने का उसको बड़ा शौख था, यो कहिये कि व्यसन था, इसी व्यसन से उसने अपनी निजी लक्ष्मी का योग्य जगह पर दान करने में किसी बात की कमी नहीं रक्खी थी। संक्षिप्त में इस
१ कई प्राचीन भंडारों में इसके लिखवाए हुए ग्रन्थ मिलते हैं।
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