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मंडपदुर्ग और अमात्य पेथड
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उम्र में जीवन पर्यंत शुद्ध ब्रह्मचर्य पालन करने का सहपत्नी व्रत लिया था। एकबार वहाँ के राजाकी रानी सख्त बीमार पड़ी। उसके जीनेको आशा तक छूट गयी थी। कई उपचार किए पर सव ब्यर्थ गए । अखीरमें पेथड कुमार मंत्रीके रामबाण जैसे पवित्र सफल उपचारसे रानी की बीमारी जाती रही। राजमंडल और प्रजामें पेथडका बहुत प्रभाव और यश फैला!
एकबार जयसिंहराजा का मुख्य हाथी शराब पीनेसे पागल होगया था । मदोन्मत्त होकर प्रजाको त्रस्त करने लगा । सब उपाय व्यर्थ जाने पर पेथड कुमारके उपायोंसे वह शान्त होकर वशवती होगया । इन दो उदाहरणोंसे अपने चरित्र नायक पेथडके कलानैपुण्य और आत्मबलका पता पाठकों को लग गया होगा।
कृतज्ञता । यों तो पेथड साधु संतोंका भक्त था ही, पर श्रीधर्म घोषसरि' पर उसकी अधिक श्रद्धा भक्ति थी, क्यों कि उनके भविष्यज्ञानसे पेथडको बहुत लाभ पहुंचा था। जब धर्मधोषसरिके मांडवगढ आनेके समाचार पेथडने सुने तब
१ श्री धर्मसागरजी 'तपागच्छीयपट्टावली' में लिखते हैं ये भगवान् महावीर की ४६वीं पट्टपरंपरा में हैं । देवेन्द्रसूरि के शिष्य थे । उज्जैन में इन्होंने कई चमत्कार दिखाकर एक योगी को हराया था । धर्मघोष नामके कई आचार्य हुए हैं ।
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