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मंडपदुर्ग और अमात्य पेथड
तुम्हारी भगवद्भक्ति से में खुश हूं। पूजा पूरी करके तुम महलपर आओ।
जयसिंहदेव का विजय ___मंत्री पूजा करके महल पर गये । शत्रुके सामने किस उपायसे काम लेना ? इसकी सलाह पूछी । मंत्रीने बहादुरीसे लड़ने की सलाह दी। राजाने वह मान ली। बस, युद्ध का नगारा बजा । उसके हाथी घोड़े और पैदल की सेना तय्यारी करके शत्रके सामने मैदान में खडी हुई । मंत्रीश्वर मुख्य था। वहीं घमासान युद्ध हुआ । थोडे समय में जयसिंह की जीत रही । सारंगदेव हार कर निस्तेज हुआ। जयसिंह की सेना मंत्रीके आधिपत्यमें विजयोत्सव करती हुई अपने स्थान पर आई । इस सपालता से राजा पे/डकुमार पर बडा खुश हुआ। जो लोग जैन धर्म अथवा जैन धर्मी को कायर डरपोक कहते हैं वह बड़ी गलती करते हैं । गुजरात, मालवा और मेवाडमें प्रायः जैन अधिकारी थे; जिन्होंने यवनों का भी सामना कर अपनी वीरता बताई थी । तेरहवीं शताब्दी में राजो कुमारपाल जैन ही था, उसके अतिरिक्त मंत्री उदायन, बाहड, अम्बड वस्तुपाल, तेजपाल, यशपालादि भी भिन्न भिन्न राजाओं के बहादुर मंत्री भी जैन ही थे। लोग पेथडको “बिना मुकुट का राजा" कहते थे।
बुद्धिकौशल्य और प्रभाव पेथड प्रतिभासंपन्न और पवित्रात्मा था । उसका ब्रह्मचर्य शुद्ध और उत्कट था। उसने ३२ बत्तोस वर्षकी
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