________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
भगवान् महावीर
१५३
था । भारत में समाज और धर्म की दुर्व्यवस्था देखकर इनके हृदय में दुख होता था । जगत् के दुःखित, भीत
और मोहान्ध मनुष्यों का उद्धार करने का ये प्रतिक्षण विचार किया करते थे । वैराग्य और करुणामय चित्तवाले महावीर का विचार आजीवन ब्रह्मचर्य पालने का था; पर इनकी माता पुत्रवधू का मुख देखने को अत्यन्त उत्सुक थीं । उन्होंने प्रेम और आग्रहपूर्ण वचनों से महावीर को विवाह करने को समझाया । महावीर परम मातृभक्त थे । वे "मातृदेवो भव" के सिद्धान्त का स्वयं पालन कर जगत् को उसका पाठ पढाना चाहते थे। कहा जाता है कि, माता के उदर में जब महावीर थे, तभी से मातृवत्सल थे । आखिर में माता को आज्ञा का पालन करने के लिए महावीर ने 'समरवीर' नाम के राजा की पुत्री 'यशोदादेवी, से विवाह किया* | महावीर की "प्रियदर्शना" नाम की पुत्री हुई थी। वह "जमाली" नाम के एक राज-पुत्र से ब्याही थी । बहुत वर्षों के बाद इसी जमाली ने भगवान् महावीर से दीक्षा लेकर एक नये मत को निकाला।
भगवान् महावीर जब अठाईस वर्ष के हुए, तब इनके माता पिता का स्वर्गवास हुआ । अब ये जगत् का उद्धार करने के लिये शीघ्र ही "
निन्थ' होना चाहते थे; परन्तु अपने बड़े भाई "नन्दिवर्द्धन" के आग्रह से भगवान् महावीर ने और दो वर्षों का विलम्ब किया । ये घर में
* दिसम्बर लोग महावीर को विवाह की बातें नहीं मानते हैं ।
For Private and Personal Use Only