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मंडपदुर्ग और अमात्य पेयड
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वह प्रभुदित होकर जुलूस समारोह से गुरुके सामने गया। बडे ठाठसे गुरुका नगर-प्रवेश करवाया । सुकृतसागर काव्य आदि ग्रथोंसे ज्ञात होता है कि इस प्रसंग पर उत्सवमें पेथड ने ७२ बहतर हजार धन खर्व किया था । विनीत भाव से उसने गुरुकी बहुत भक्ति को और कहा कि आपने जो पाँच लाखका नियम दिया था उससे भी अधिक धन आप की कृपासे मुझे मिला है, अतः आप रास्ता बताइये कि मैं इस धन का व्यय किसमें करूं । गुरु के उपदेश से पेथड ने मांडवगढमें शत्रुजयावतार' नामक ऋषभदेव का जैन मन्दिर बन्धवाया । वह गुरुके उपकार को मानतो हुआ उनकी बहुत स्तुति करता था ।
ज्ञानप्रेम और साहित्यभंडार पेथड कुमार बचपनसे ही विद्या का व्यसनी और बिद्वानों का मित्र व उत्तेजक था । महान् धनाढ्य और
१ शत्रजय जैनों का मुख्य तीर्थ पालिताणा में हैं, उसके सश यह वि. १३२. में बना था ।
२ सुकृतसागर काग के एक श्लोक से उसकी गुरुभक्ति का पता चलता है । वह श्लोक यह है:प्रक्षाल्याक्षतशीतरश्मिसुधया गोशीर्षगाढवे
लिप्त्वाऽभ्यर्च्य च सारसौरभसुरद्रुत्थप्रसूनैः सदा । त्वत्पादौ यदि संवहेय शिरसा त्वत्कत्तृकोपक्रिया
प्रागूभारात् तदपि श्रयामि भगवन् ! नापर्णतां कर्हिचित् ॥
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