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झांसी का इतिहास
से दोस्त ये ही वीरसिंहदेव थे । अकबर के मरने पर इनकी वीरता और सच्ची मित्रता से तुष्ट होकर जहांगीर ने वीरसिंहदेव को बहुत बडे प्रांत को राज्य दिया, जिसका विशेष उल्लेख, हम आगे करेंगे । इस समय ओरछा तिकमगढ़ के राजा के हाथ में है और झांसी से करीब १० मील दूर दक्षिण दिशा में है । पक्की सड़क गई है। यहां पर भी श्री वीरसिंहदेव का बनवाया किला और दूसरी इमारतें भी देखने योग्य हैं ।
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झांसी नाम
जब जैतपुर का राजा, वीरसिंहदेव के यहां ओरछा आये, तब राजा वीरसिंहदेव ने जैतपुर के राजा से पूछा कि "क्या वंगराकी पहाड़ी का किला यहां से आपको दिखता है" ! उत्तर में जैतपुर के महाराजा ने ओरछा के महाराज से कहा कि "कुछ झांईसी दिखाई देती है" उस दिन से इस बलवन्त नगर का नाम झांईसी पडा । उसी का परिवर्तन होकर कुछ वर्षों से इसका नाम झांसी होगया ।
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झांसी के स्वामी
कुछ काल के पश्चात् यह बंगरा की पहाडी और उस पर का किला मुगल राजाओं की सत्ता में आया, उसके बाद 'परिवर्तन शील संसार है' इस नियम से
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