________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
मंडपदुर्ग और अमात्य पेथड
लता से एक ही जीवन में सफल बनाकर यश और पुण्य को कमाया' । राज्य की इजत, लक्ष्मी और सत्ता का विकास किया। भारत की रक्षा की, उसका गौरव बढा कर आयुः पूर्ण होने के बाद स्वर्गवासी हुए। यह समय विक्रम की चौदहवीं शताब्दी का था ।
पेथड कुमार की मृत्यु से जयसिंह राजा, राज्याधिकारी वर्ग और प्रजाजन को बहुत शोक हुआ। एक योग्य बहादुर मंत्री के जाने से सर्वत्र वियोग जन्य दुःख दिखता था।
पेथड कुमार का पुत्र झांझनकुमार था, वह भी
१--मारवाड, गुजरात, मालवा, मेवाड और दक्षिणादि देशों के मुख्य २ स्थानों पर बडे बडे जैन मन्दिर करवाए जिनकी संख्या ८४ हैं
[यस्यपदेशात् नृपमंत्रिपृथ्वीधरश्चतुर्भिः सहितामशीतिम् । ज्ञातीरिवोद्भर्तुमिदंमिताः स्वा व्यधापयत्तीर्थ कृतां विहारान् ॥
हीरशौभाग्य ४. । ] सोमतिलकसूरिने 'चैत्यस्तोत्र" में गांवों के नाम ७८ बतलाये हैं।
श्रीधर्मधोषसूरि के पास संतोष व्रत लिया । ___ बत्तीस वर्ष की उम्र में जीवनपर्यन्त ब्रह्मचर्य पालने का अपनी पत्नी सहित व्रत लिया ।
राज्य में पंचमी, अष्टमी, एकादशी, चतुर्दशी आदि बडे दिनों में मांस, मदिरा, छूत, शिकार, वेश्यागमनादि व्यसन बन्द करवाए ।
राजा को भी धर्मशील बनाया । प्रतिदिन जिन--पूजा संध्यादि करता था । *इसके विषय में झांझनकुमार-प्रवन्ध देखना चाहिए ।
For Private and Personal Use Only