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महाकवि शोभन और उनका काव्य
इस पद्य के चारों पदों में सुन्दरतर यमकालंकार की भरमार विद्वानों के चित्त को चमत्कृत करने वाली है ।
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बैरोट देवी की स्तुति
याता या तारतेजाः सदसि सदसिभृत्कालकांतापारिं पारिन्द्रराज सुरवसुरवधूपूजिताऽरं जितारम् । सा त्रासात् श्रायां त्वामविषम विषभृदभूषणाऽभीषणा भीही नाहीनाsपत्नी कुवलयवलयश्यामदेहाऽमदेहा ॥ ९२ ॥
इस कृति में छोटे बडे अनेक प्रसिद्ध तथा अप्रसिद्ध विशिष्ट छंद और अलंकार ऐसे हैं जो विद्वानों के हृदय में बहुत ही आनन्द उत्पन्न करते हैं । विभिन्न अलंकारों तथा छंदों में अपने भावों का सफलतापूर्वक समावेश करना कितना कठिन है, यह बात कविता बनानेवाले ही समझ सकते हैं। ऐसे चमत्कारपूर्ण यमक अनुप्रासादि अलंकारों से युक्त उत्तम काव्य बनाते समय शोभन मुनि का चित कितना एकाग्र हुआ होगा, इसका अनुमान हमारे पाठक कर सकते हैं । हाँ एक उदाहरण 'प्रभावक चरित्र' में भी मिलता है । एक समय की बात है शोभन मुनि “जिन स्तुति चतुर्विंशतिका" बना रहे थे । उसी बीच में आप गौचरी ( मधुकरी भिक्षा ) लेने गये । चलते-चलते प्रस्तुत कृति बनाने की एकाग्रता में इनका चित्त इस प्रकार लीन रहता था कि अपना ख्याल न रहने के कारण एक बार एक ही श्रावक (जैन गृहस्थ) के घर तीन बार गौचरी के हेतु चले गये । जब तीसरी बार उसी स्थान पर गौवरी
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