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मंडपदुर्ग और अमात्य पेयड
-: २९ :मंडपदुर्ग और अमात्य पेथड.*
इस निबन्ध में हम जिनका परिचय देनेवाले हैं, उनमें एक तो है मण्डपदुर्ग, और दूसरा है अमात्य पेथडकुमार । इनका सारांश यह है:
मण्डपदुर्ग धार के पास प्राचीन कालका नगर है । जिसका वर्तमान नाम मांडवगढ या मांडु है । तेरहवों शताब्दी से सत्तरहवीं शताब्दी तक यह प्रसिद्ध शहर व्यापार व राजनीति का मुख्य स्थान गिना जाता था । तेरहवीं शताब्दो के जयसिंह राणा के समय में इसकी ख्याति और प्रौढिमा बढी चढी थी । अमात्य पेथड, झांझन . कुमार, मंत्री मंडन और कविरत्न धनद इसी शहर के रत्न थे । जहाँगीर बादशाह ने इसको अपना प्रियस्थान बनाया था। श्रीविजयदेवसूरि और भानुचन्द्रोपाध्याय को यहाँ निमन्त्रित कर बादशाह उपदेश सुनता था। उन्नीसवीं शताब्दी के एक ऐतिहासिक पत्र से ज्ञात होता है कि यहाँ १४४४ जैनमन्दिर थे, जिनमें कई सुवर्ण हीरा माणेक की मूत्तियाँ थी । इसका किलो दृढतर और रमणीय है । यह एक जैन तीर्थ है । वर्तमान में यह शहर जीर्ण शीर्ण होकर गाँवडे के रूप में स्थित है ।
*सातवीं औरियन्टल कान्फरेन्स. वडोदा में उपस्थित किया हुआ लेख ।
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