________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
महाकवि शोभन और उनका काव्य
ने 'सरला' नामकी संस्कृत टीका भी कुछ वर्ष पूर्व लिखी थी।
इस समस्त लेख का सारांश यह है कि मालवे के विद्योत्तेजक भोजराजा के राज्य काल में (विक्रम संवत् १०६७ से ११११ तक) सर्वदेव ब्राह्मण पंडित के पुत्र शोभन नामक महाकवि ने जैन श्रमण होकर अपनी कवित्व-शक्ति का अच्छो विकास किया। प्रसिद्ध तिलकमंजरो के कर्ता महाकवि धनपाल जिस पर मालवपति राजा मुंज और भोज की अन्त तक असीम कृपा बनी रही, शोभनमुनि का बड़ा भाई था । इनका समस्त कुटुम्ब विद्या के संस्कार से परिपूर्ण था। उज्जैन और धारा से इनका विशेष सम्बन्ध रहा। मालवे के तत्कालीन विद्वानों में ये और महाकवि धनपाल प्रसिद्ध थे। ऐसे विद्वानों को जन्म देने के लिए मालवा देश शतशः धन्यवाद के पात्र है। हम चाहते हैं कि मालवे में फिर ऐसे विद्वान् उत्पन्न हों।
For Private and Personal Use Only