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महाकवि शोभन और उनका काव्य
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के हेतु आए तो गृहस्वामिनी ने पूछा, "मुनिराज! बारबार मेरे यहाँ ही गौचरो के हेतु आपके आने का क्या कारण है ?" उत्तर में शोभन मुनि ने कहा, "बहिन ! इस समय कविता बनाने में मेरा मन इस प्रकार लीन हो रहा था कि मुझे यह पता ही नहीं कि मैं क्या कर रहा हूँ और किसके घर गौचरी हेतु जो रहा हूँ।” पूछने वाली स्त्री ने उपाश्रय में आकर शोभन मुनि के गुरु को भी यह सब बात कह दी । इससे गुरुजी शोभान पर बहुत ही प्रसन्न हुए और अपने लब्धप्रतिष्ठ विद्वान् शिष्य की काव्यरसिकता से संतुष्ट होकर खूब प्रशंसा की। शोभन मुनि काव्य बनाने में कितने तल्लीन होते थे इमका अनुमान पाठक लोग इस घटना से भली-भांति कर सकते हैं । शोभन मुनि की कृति प्रत्येक विद्वान् कवि के चित्त को आकर्षित करती है:। जन लोगों में इसका काफी प्रचार है । मंदिरों तथा प्रतिक्रमणादि धर्म-क्रियाओं में इसके पद्य बोले जाते हैं ... हम पाठकों स इतना सविनय अनुरोध करते हैं कि वे इस कृति को अवश्य देखें ।
शोभनस्तुति की टीकाएं
महाकवि शोभन मुनि की प्रस्तुत कृति 'श्रीजिनस्तुतिचतुर्विशतिका' में शब्दालंकार का चमत्कार और भक्ति का अतिरेक होने के कारण इस रचना की ओर कई विद्वानों का चित्त आकृष्ट हुआ । जैन, वैदिक और बौद्ध साहित्य में नव सौ वर्ष से अधिक पुरानी ऐसी कृति नहीं
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