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महाकवि शोभन और उनका काव्य
इस पद्य के दूसरे चौथे पद्य समान है परन्तु अर्थ में बडा अन्तर है।
समस्त तीर्थकरों की स्तुति विधुतारा ! विधुताराः ।
सदा सदाना ! जिना ! जिताघाताधाः । तनुतापातनुताप ।
हितमाहित मानवनवविभवा ! विभवाः ॥११॥ ___ इस पद्य में चारों चरण अनुप्रास यमकालंकार से भरे हुए हैं। एक के बाद दूसरे पद शब्द से समान आते हैं परन्तु अर्थ से जुदे जुदे हैं ।।
सिद्धान्त का स्तवन सिद्धान्तः स्ताद् अहितहतयेऽख्यापद् यं जिनेन्द्रः ..
सद्राजीव स कवि धिषणापादनेऽकोपमानः दक्षः साक्षाच्छ्वणचुलुकैर्य च मोदाद् विहायः
सद्राजी वः सविधिषणापादनेकोपमानः ॥३१॥
इस वृत्त में दूसरा और चौथा चरण यमकअलंकार की छटायुक्त है।
भगवान् पार्श्वनाथ की स्तवना मालामालानबाहूर्दधददधदरं यामुदारा मुदाराल्लीनाऽलीनामिहाली मधुरमधुरसां सूचितोमोचितोमा । पातात् पातोत् स पावो रुचिररुचिरदो देवराजीवराजीपत्राऽऽपत्त्रा यदीया तनुरतनुरवो नन्दको नोदकोनो ॥८९॥
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