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महाकवि शोभन और उनका काव्य
पद्यों की, छोटी सी परन्तु विविध जाति के अलंकारों और छन्दों से परिपूर्ण चमत्कारवाली सुन्दर कृति बनायी । इसमें प्रत्येक तीर्थकर (वर्तमान काल तक के चौबीस तीर्थंकरों), जैनागम, तथा सोलह विद्यादेवियों आदि का काव्यपद्धति से वर्णन है । इस कृति में शब्दालंकार विशेषकर 'यमक' तथा 'अनुप्रास' की छटा इस प्रकार देखने में आती है कि पढकर बडे-बड़े कवि भी. मुग्ध होजाते हैं । किसी स्थान पर मध्यान्तयमक. तो किसी स्थान पर आदि (मध्यान्त यमक के साथ), किसी स्थान पर आद्यन्तयमक
और किसी स्थान पर असंयुतावृत्ति यमक आदि' अलंकारों से काव्य इस प्रकार शोभित है मानो अनेकानेक हीरे, पन्ने माणिक मोतिओं से जडित हार हो ।
- यहां पर हम उक्त महाकवि शोभन की कृति के कुछ पद्य लिख कर अपने कथन की पुष्टि के साथ पाठकों को काव्य का रसास्वादन कराना चाहते हैं । आशा है पाठक-गण इससे संतुष्ट तथा प्रसन्न होंगे।
___ श्री ऋषभदेव की स्तुति भव्याम्भोजविबोधनैकतरने! विस्तारिकर्मावलीरम्भासामज ! नाभिनन्दन ! महानष्टापदाभासुरैः । भक्त्या वन्दितपादपद्म ! विदुषां संपादय प्रोज्झितारंभासाम ! जनाभिनन्दन ! महान् अष्टापदाभासुरैः ।।१।।
१ इन शब्दालंकारों के लक्षण वागभटालंकारविकल्पलता की वृत्ति और सरस्वतीकंठाभरण आदि ग्रन्थों में मिलते है ।
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