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महाकवि शोभन और उनका काव्य
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विशेषकर पाटण में, लगभग तीस से चालीस वष की उम्र में इनका अकाल स्वर्गवास हो गया होगा। प्राप्त प्रमाणों के आधार पर यही अनुमान किया जा सकता है।
साहित्य दृष्टि से महान् शक्ति धारण करनेवाले अनेक ग्रन्थों को लिखने तया धर्म की सेवा करने की उथ भावना रखनेवाले शोभनमुनि यदि कुछ अधिक जीते तो काव्य तथा अलंकार के अनेक मौलिक ग्रन्थों की रचना कर जैन साहित्य का गौरव अवश्य बहाते। दुर्भाग्यवश ऐसा नहीं हो सका । इतने पर भी संतोष की बात यह है कि श्री शोभन मुनि एक चमत्कारपूर्ण ग्रन्थ की भेंट हमें दे गये हैं। इसका नाम है 'जिन-स्तुतिचतुर्विशतिका' । यह छोटी सी कृति भी सुन्दर शब्द-छटा तथा ईश्वर-भक्ति से पूर्ण है और कवि के उज्ज्वल यश को चारों ओर फैला रही है । इसमें कुछ भी सन्देह नहीं कि महाकवियों की छोटी सी रचना भी साधारण कत्रियों की बड़ो-बड़ी रचनाओं से अधिक मूल्यवान और आनन्दप्रद होती है।
शोमन मुनि की कृति
शोभनमुनि की बुद्धि तीक्ष्ण थी, भावना उदार थी, उनका जीवन भव्य तथा रसिक था । काव्य-साहित्य के तो वे बहुत ही धुरंधर विद्वान थे । इसी के फलस्वरूप उन्होंने 'भव्याम्भोजविबोधनकतरणे!' से प्रारम्भ होने वाली ९६
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