________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
महाकवि शोभन और उनका काव्य
जैनियों में धर्म-प्रेम तथा आत्माभिमान जगाने के लिए मालवे के संघ ने श्री महेन्द्रसूरि जी के पास जाकर मालवे की वास्तविक स्थिति कही, और आचार्यश्री से प्रार्थना की कि वे वहाँ पधार कर राजा भोज की अनुचित आज्ञा को बंद करने का कष्ट करें। इस बात को पास में बैठे हुए शोभन मुनि ने बड़े ही ध्यानपूर्वक सुना । आचार्य श्री इस समय गुजरात में विराजमान थे । संघ की विनती और शोभन मुनि का धारा-नगरी.
की ओर प्रस्थान शोभन मुनि पढ़ लिखकर असाधारण विद्वान् बन गये थे। प्रभावपूर्ण उपदेश देने की शक्ति इसमें सहज ही में आ गयी थी । अतः आचार्यश्री ने इनको वाचनाचार्य का पद प्रदान किया था । अपने देश (मालवा) के लोगों की विनति सुन कर उन्होंने विचार किया कि मालवे में जैन मुनियों के प्रवेश होने का निषेध मेरे ही कारण है। अतः मुझे ही इसका प्रतिकार करना चाहिए । शोभनमुनि कायर और आमोद-प्रमोद में रहने वाले साधु नहीं थे । इन में साहस था, शासन के प्रति पूर्ण भक्ति थी और चाहे जो सामने आ जाय उसको समझाने की विद्वत्ता रखते थे, अतएव मालवे की बिगडी हुई दशा सुधारने की अभिलाषा से वहाँ जाने की इच्छा आपने गुरु जी के सामने प्रकट की । बस फिर क्या था ? 'इष्टं वैद्योपदिष्टं की बात हुई । शोभन ने थोडे ही साधुओं को साथ ले धारा नगरी की
For Private and Personal Use Only