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महाकवि शोभन और उनका काव्य
__मुंजराजा इसे पुत्र की भाँति मानते थे। प्रसिद्ध राजा भोज तो इसके परम मित्र थे । 'सरस्वती' का पदक इसको मुंजराज को ओर से मिला था । (देखो तिलकमंजरी पद्य ५३) । सर्वतंत्रस्वतंत्र सर्वशास्त्रपारंगत श्री हेमचन्द्राचार्य ऐसे आचार्यों ने भी धनपाल की कविताओं से श्री जिनेश्वर देव को स्तुति की थी। 'हैमकोष' 'हैमकाव्यानुशासन' तथा 'हैमछन्दोनुशासन' की वृत्तियों में भी धनपाल और उनकी कविताओं का उल्लेख मिलता है । इससे यह स्पष्ट ज्ञात होता है कि कि धनपाल आदर्श कवि, तथा समर्थ विद्वान् था । १'भवियसत्तकहा' का कर्ता धनपाल, इस धनपाल से पृथक है । अन्यान्य ग्रन्थों में धनपाल का जीवन बहुत विस्तृत और बहुत ही सरस है । यहाँ आवश्यकता न होने के कारण उसे लिखना ठीक नहीं जान पडता । अस्तु ।
मालवे में जैन साधु
शोभन मुनि के महान् प्रयत्न से जैन मुनि पुनः समस्त मालवा में विचरने लगे। मालवे के जैनियों में
१. महाकवि धनपाल के लिए, मेस्तंगाचार्य ने 'प्रबन्ध-चन्तिामणि में लिखा है
"वचन धनपालस्य चन्दन मलयस्य च । सरस हृदि विन्वस्य कोऽभून्नाम न निवृतिः? ॥१॥
( प्रबन्ध चिन्ताणणि पृ ४२ )
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