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महाकवि शोभन और उनका काव्य
और आत्माभिमुखता को देखकर स्याद्वाद-नय-प्रमाणसप्तभंगी-निक्षेप आदि गूढ सिद्धान्तों का और साधु गृहस्थ विषयक आवारों का प्रतिपादन किया । धनपाल विचक्षण तथा प्रतिभासम्पन्न था । वह उसी समय सब सिद्धान्तों और आचारों का महत्व समझने लगा । जैन धर्म अत्यन्त गहरे तत्त्वों का खजाना है। अतः, उसके समझने में मेधावी पुरुष जितने शीघ्र समर्थ होते हैं उतने इतर नहीं ।
धनपाल कवि का जैन धर्म स्वीकार करना
शोभन मुनि के उपदेश से धनपाल का हृदय आई हुआ। उसने कहा-"तुमने बहुत अच्छे सिद्धान्त बताये हैं मैं आज से जैन धर्म स्वीकार करता हूँ और अपने जीवन को जैन धर्म के अधीन बनाता हूँ। मैने अज्ञानवश पहले आप और दूसरे साधुओं का भ्रमण मालवे में बन्द करवाया था । यह मैंने बहुत बड़ा अपराध किया। मैं अपने इस दुष्कृत्य की निन्दा करता हूँ और आप से क्षमाप्रार्थी हूँ।"
इसके अनन्तर शोभन मुनि के साथ धनपाल भगवान् महावीर के मन्दिर में गये । वहाँ तीर्थकर की मूर्ति के सम्मुख धनपाल ने मन्त्रोच्चार करके विधिपूर्वक जैन धर्म ग्रहण किया। उस समय कई जैनेतर जैन विद्वान्-अधिकारी भी उपस्थित थे । धनपाल के जीवन ने आज अभूतपूर्व पलटा खाया । भोज राजा का मान्य पुरोहित या मित्र, मालवे का सुप्रसिद्ध विद्वान् महाकवि धनपाल जैन धर्मानुयायी हो गया, यह बात समस्त
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