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महाकवि शोभन और उनका काव्य
हमारा आचार है । अतः, हम आप से ही यह निर्णयार्थ पूछते हैं । अब रही बात जीवों को, सो इस सम्बन्ध में हमें यही कहना है कि दो दिन के बाद के दही में खटास बढती जाती है और उसमें उसी रंग के जीव उत्पन्न होने लगते हैं । यह बात जैन शास्त्र कहते हैं । यदि तुमको इसका प्रमाण चाहिए तो एक तिनका दहो लाकर उस दही में अलता डाल | यह बात सुन धनपाल को बडा आश्चर्य हुआ और स्नान छोड़ वहाँ आ सब दृश्य देखने लगा । इस कौतुक का साक्षात्कार करने के लिए अथवा तत्व का निर्णय करने के लिए उसने अलता मंगवाकर दही में डाला कि थोडी ही देर में दही के वर्ण के छोटे-छोटे जीव उसके ऊपर चलते दृष्टिगोचर होने लगे । धनपाल का हृदय इस आश्चर्यमय दृश्य को देखते ही पिघल गया और उसकी सम्पूर्ण विचारधारा बदल गयी । उसमें जैन धर्म के प्रति श्रद्धा का बीजारोपण हो गया । ऐसा नम्र हो गया, मानो वह शास्त्रार्थ में परास्त हो गया हो। वह मुनिराजों को हाथ जोडकर बोला --
पूज्य, आप कौन हैं ? आप किसके शिष्य हैं ? आप कहाँ उतरे हैं ?" मुनियों ने इन सब प्रश्नों का उचित उत्तर दिया और धनपाल के घर से उपाश्रय ( जहाँ जैन साधु ठहरते हैं ) को लौट आये । धनपाल भी उनके साथ-साथ उपाश्रय तक आये ।
दो भाइयों की भेंट
शोभन मुनि ने जो परिणाम चाहा था वही हुआ । जब धनपाल कवि शोभन मुनि के पास आये तब शोभन
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