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महाकवि शोभन और उनका काव्य
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होकर धनपाल ने अपने आदमी के साथ सब मुनियों को उपाश्रय पहुँचाया । शोभन के अतिरिक्त सम्पूर्ण धारानगरी में कोई भी यह नहीं जानता था कि आज ये दोनों सगे भाई आपस में मिले थे।
धनपाल को प्रतिबोध धारा-नगरो की स्थिति को सुधारने के लिये शोभनमुनि के मन में अनेक संकल्प विकलप होने लगे। वे विचारने लगे कि धनपाल को किस प्रकार प्रतिबोध करना चाहिये । यह विचार कर उन्होंने बहुत ही कुशल और योग्य साधुओं को धनपाल के यहां गौचरी (भिक्षा) लेने के लिए भेजो। प्रशान्त आकृतिवाले दो जैन साधुओं ने जैन धर्म के कट्टर शत्रु धनपाल के घर पर जाकर धर्मलाभ' का पवित्र नाद सुनाया । धनपाल उस समय स्नान कर रहे थे । 'धनपाल' की स्त्री ने रुष्ट होकर इन साधुओं से कहा- "चले जाओ, यहां पर खाने को कुछ नहीं मिल सकता" स्नान करते-करते धनपाल ने अपनी स्त्री से कहा- "अतिथि को निराश करना बहुत बड़ा अधर्म है, अत: इनको कुछ न कुछ तो अर्पण करो ।” स्त्री ने तीन दिन का खट्टा दही लाकर मुनिराजों को देना चाहा । इस पर मुनियों ने पूछा “बहिन, यह कितने दिनों का है ?" यह बात सुनते ही उस स्त्री को बहुत क्रोध आगया और बोली , “क्या इसमें जीव पड गये हैं ? लेना हो तो लो नहीं तो अपना रास्ता पकडो । ” मुनियों ने शांति से कहा -"तुम वृथा क्यों क्रोध करती हो ? बहिन, यह
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