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महराजा कुमारपाल चौलुक्य
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मतलब यह कि कुमारपाल की राज्य सत्ता दूरदूर तक चारों दिशाओं में फैल गई थी । दक्षिण में कोलापुर, उत्तर में जालन्धर, काश्मीर, पूर्व में चेदि, मगध, कुशात, दशार्ण और पश्चिम में सिन्ध, पञ्चनद, वाहक, सौराष्ट्रदेश तक इसका राज्य हो गया था । सारा मारवाड, मालवा इसकी सत्ता में आगया था । सिद्धराज से इसने अपनी राज्यसीमा बहुत बढाई । सेना शस्त्रादि में वृद्धि की । बहुत नए राज्यों को अपने पुरुषार्थ से इसने प्राप्त किया। इसके अधिकारियों में बहुत से जैन-धर्मी थे। जैन धर्म की अहिंसा को न समझनेवाले मानते हैं कि जैन धर्म कायर बनाता है । उनका यह अनुमान सर्वथा झूठा है । जैन धर्म में गृहस्थों के लिए तो इतनी ही अहिंसा है कि वे गुनहगारों को न मारो। इसी कारण श्रेणिक, कोणिक, चन्द्रगुप्त, संप्रति और कुमारपाल आदि जैन राजाओं ने वीरतापूर्वक भूमि का रक्षण किया है ।
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१. श्री महावीरचरित में लिखा है
स कौबेरीमातुरुष्कमैन्द्रीमात्रिपथापगाम् । याभ्यामाविन्ध्यमावाद्धिं पश्चिमां साधयिष्यति ॥ १२-५२ ॥ अर्थात् कुमारपाल उत्तर में यवन देश तक, पूर्व में गङ्गा तक, दक्षिण में विन्ध्याचल पर्यन्त और पश्चिम में समुद्र तक अपनी राज्यसत्ता फैलावेगा ।
निरागसत्रसजन्तूनां हिंसां संकल्पतस्त्यजेत् ॥
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