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महाकवि शोभन और उनका काव्य
समय में भारतवर्ष की प्रत्येक भाषा में जन मुनियों तथा जैन गृहस्थों ने सुन्दरतम काव्य-रचना करके सम्पूर्ण जगत् को चकित कर दिया है । संस्कृत, प्राकृत, गुजराती तथा कानडी भाषाओं में तो कितने ही जैन कवियों के नाम अठारवीं शताब्दी तक सन्मानपूर्वक लिये जाते हैं ।
शोभन मुनि का श्रेष्ठ कवित्व
श्री शोभन मुनि भी उन्हीं विशेष प्राकृतिक कवियों में एक श्रेष्ठ कवि थे। इसके प्रमाण के लिए उनकी "जिन स्तुति चतुर्विशतिका " नाम की कृति ही पर्याप्त है। उनकी दूसरी कृतियाँ उपलब्ध नहीं हैं। सम्भव है उन्होंने और काव्य बनाए ही न हों। उनको जो कृति हमारे देखने में आयी है उसी के आधार पर हम इनको श्रेष्ठ कवि कहते हैं और ऐसा कहने में हमें किसी प्रकार की अत्युक्ति नहीं मालूम होती।
"जिसने बहुत से काव्य लिखे हों वही बडा कवि है।" यह कथन ठीक नहीं कहा जा सकता। कवित्व-शक्ति अच्छी से अच्छी होते हुए भी कितने ही महाकवि विना कोई महाकाव्य रचे ही इस संसार को छोड कर चले जाते हैं । कितने हो कवि दूसरे विषयों के ग्रन्थ लिखने में ही अपना आनन्द और लाभ मानते हैं। अतएव वे काव्य ग्रन्थ बहुत ही कम प्रस्तुत करते हैं । कभी-कभी तो वे कुछ भी नहीं लिखते। ऐसे एक नहीं अनेक उदाहरण उपलब्ध हैं। इस स्थिति में यदि हम ऐसे वास्तविक
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