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महाकवि शोभन और उनका काव्य
कवियों को कवि न मानें तो बहुत बड़ी भूल होगी। यदि यह बात ऐसी न होती तो केवल "कल्याणमंदिरस्तोत्र" लिखने के कारण सिद्धसेन दिवाकर को हजारों श्लोकों के काव्य-निर्माता आचार्य हेमचन्द्रसूरि जैसे विद्वान् और कवि" अनुसिद्धसेन कवयः” (सिद्धहेम २-२-३९ पृ.०७२) न कहते । अतः, यह मानना होगा कि कविता बनाना दूसरी बात है और कवित्व-शक्ति दूसरी बात ! शोभन मुनि वास्तविक कवि थे। शब्द, अलंकार और भक्ति से ओतप्रोत 'जिनस्तुति चतुर्विंशतिका' नामक एक कृति संसार के सामने रख कर उन्होंने युवा अवस्था में ही स्वर्गपुरी की यात्रा की। इनकी इस कृति की आलोचना करने का कार्य मैं बाद में करूँगा। अभी तो इस कृति के कर्ता शोभन मुनि के जीवनचरित्र की ओर ही पाठकों को ले जाना चाहता हूँ।
श्री शोभनमुनि के जीवन पर प्रकाश
आज तक प्रकाशित जितने प्राचीन तथा अर्वाचीन ग्रन्थ मिलते हैं, उनमें शोभन मुनि का जीवन-चरित्र बहुत ही थोडा और अपूर्ण मिलता है । इनके जन्म स्थान, माता, पिता. तथा गुरु के सम्बन्ध में अनेक ग्रन्थकार, अनेक मत व्यक्त करते हैं। मुझे तो इनके जीवन-चरित्र के सम्बन्ध में महाकवि 'धनपाल' (शोभन मुनि के बडे भाई) के ग्रन्थ 'प्रभावक चरित्र' तथा 'प्रबन्धचिन्तामणि' में लिखित बातें ही प्रामाणिक ज्ञात होती हैं । शोभन मुनि
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