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महाकवि शोभन और उनका काव्य
में फेल गयी और सब पण्डितों तथा राजा' 'भोज' (स्वभू) के हृदय में इनका अच्छा स्थान हो गया । अतएव कुछ ही समय में ये समग्र विद्वन्मण्डली में अग्रगण्य हो गये ।
भूमि से गुप्त धन की प्राप्ति
अधिकतर विद्वान् धनवान नहीं होते । हमारे चरित्र नायक के पिता सर्वदेव का भी यही हाल था । इनके पूर्वज धनी थे, परन्तु इन पर लक्ष्मी प्रसन्न नहीं थी । इनके पिता ने घर में बहुत सा धन जमीन में गाढ रखा था । परन्तु इनको इस बात का बिलकुल पता नहीं था कि वह कहां है । सर्वदेव ने बहुत प्रयत्न किया कि कहीं धन मिल जाय, परन्तु उसके सब प्रयत्न निष्फल हुए । अन्त में उनके पुण्योदय से एक दिन धारा में तपस्तेज से परिपूर्ण श्री महेन्द्रसूरि का आगमन हुआ । इनकी महिमा बात की बात राजा, प्रजा तथा सब पण्डितों में प्रकाश के समान फैल गयी । सर्वदेव भी इन आचार्य श्री के पास दर्शनार्थ गये । थोडे ही समय में आचार्य श्री पर उनका प्रेम और विश्वास बढते-बढते बहुत ही बढ गया । एक दिन गुरुदेव को इन्होंने अपनी निर्धनता की बात कही और घर में रखे हुये धन
१ राजा भोज की राजधानी पहले उज्जैन में थी परन्तु जब गुजरात आदि के भीम चौलुक्य इत्यादि के आक्रमण की आशंका उत्पन्न हुई (देखो प्रबन्धचिन्तामणि में भीम-भोज प्रबंध) तब भोज धारा में राजधानी स्थापित कर वहां रहने लगा था । ले०
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