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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महाकवि शोभन और उनका काव्य में फेल गयी और सब पण्डितों तथा राजा' 'भोज' (स्वभू) के हृदय में इनका अच्छा स्थान हो गया । अतएव कुछ ही समय में ये समग्र विद्वन्मण्डली में अग्रगण्य हो गये । भूमि से गुप्त धन की प्राप्ति अधिकतर विद्वान् धनवान नहीं होते । हमारे चरित्र नायक के पिता सर्वदेव का भी यही हाल था । इनके पूर्वज धनी थे, परन्तु इन पर लक्ष्मी प्रसन्न नहीं थी । इनके पिता ने घर में बहुत सा धन जमीन में गाढ रखा था । परन्तु इनको इस बात का बिलकुल पता नहीं था कि वह कहां है । सर्वदेव ने बहुत प्रयत्न किया कि कहीं धन मिल जाय, परन्तु उसके सब प्रयत्न निष्फल हुए । अन्त में उनके पुण्योदय से एक दिन धारा में तपस्तेज से परिपूर्ण श्री महेन्द्रसूरि का आगमन हुआ । इनकी महिमा बात की बात राजा, प्रजा तथा सब पण्डितों में प्रकाश के समान फैल गयी । सर्वदेव भी इन आचार्य श्री के पास दर्शनार्थ गये । थोडे ही समय में आचार्य श्री पर उनका प्रेम और विश्वास बढते-बढते बहुत ही बढ गया । एक दिन गुरुदेव को इन्होंने अपनी निर्धनता की बात कही और घर में रखे हुये धन १ राजा भोज की राजधानी पहले उज्जैन में थी परन्तु जब गुजरात आदि के भीम चौलुक्य इत्यादि के आक्रमण की आशंका उत्पन्न हुई (देखो प्रबन्धचिन्तामणि में भीम-भोज प्रबंध) तब भोज धारा में राजधानी स्थापित कर वहां रहने लगा था । ले० For Private and Personal Use Only
SR No.020374
Book TitleHimanshuvijayjina Lekho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHimanshuvijay, Vidyavijay
PublisherVijaydharmsuri Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages597
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Gujarati
File Size18 MB
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