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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महाकवि शोभन और उनका काव्य को बतलाने की उनसे प्रार्थना की। आचार्य श्री ने ज्ञानदृष्टि से दृष्टिपात कर इन्हें गुप्त धन का स्थान बताया । भाग्य से उसी स्थान से सर्वदेव को प्रचुर धन प्राप्त हुआ । ९३ अतः, पञ्च महाव्रत धारक सर्वदेव पण्डित होने के साथ ही साथ कृतज्ञ भी थे । वे सूरिजी के प्रत्युपकार का बदला देना चाहते थे । उनने गुरु महाराज से प्रार्थना की कि इस द्रव्य का आधा हिस्सा आप ग्रहण करें । परन्तु ये महात्मा तो १ जैनाचार्य थे | परिग्रह से सर्वदा दूर रहने वाले निर्ग्रन्थ, धन को लेकर क्या करें ? इन्होंने एक कौड़ी भी नहीं ली । सर्वदेव के बहुत आग्रह करने पर एक मार्ग बताया और कहा कि यदि तुम मुझे कुछ अर्पण करना चाहते हो तो अपने दोनों पुत्रों में से एक मुझे भेंट-स्वरूप दे दो, जिससे संसार में तुम्हारा और तुम्हारे पुत्र का भी नाम हो और दोनों का इहलोक तथा परलोक सुधर जाय । यह बात सुनकर सर्वदेव कुछ न बोले । कारण, यह बात उन्हें नहीं जंची। परन्तु उपकार का बदला देने की इच्छा दिन पर दिन प्रबल होती गयी और वे सदैव चिंता में मग्न रहने लगे । " प्रभाव कचरित्र" के For Private and Personal Use Only अहिंसा - सत्य- अस्तेय - ब्रह्मचर्य और निर्ममत्व भाव को संपूर्ण रूप से पालन करनेवाले महाव्रतधारी कहलाते हैं । जैन धर्म में जो साधु गुरु कहलाते हैं, वे इन पांचों महाव्रतों का पालन करते हैं । 13
SR No.020374
Book TitleHimanshuvijayjina Lekho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHimanshuvijay, Vidyavijay
PublisherVijaydharmsuri Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages597
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Gujarati
File Size18 MB
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