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महाराजा कुमारपाल चौलुक्य
में लिखा है । यह अपनी श्लाघा नहीं सुनना चाहता था । यही कारण है कि यह खुशामदी लोगों का शिकार नहीं हुआ । यह बडा कृतज्ञ था ।
आचार्य हेमचन्द्र जो सम्बन्ध चन्द्रगुप्त का चाणक्य के साथ था वही कुमारपाल का हेमचन्द्र के जाथ रहा । विद्वत्ता की दृष्टि से विक्रम और हर्ष के साथ कालिदास और बाण के समान हेमचन्द्र का सम्बन्ध था । अतः यदि हेमचन्द्र का कुछ भी परिचय न दिया जाय तो कुमारपाल का वृतान्त अधूरा ही रहता है । हेमचन्द्र का संक्षित परिचय इस प्रकार है
हेमचन्द्र का जन्म वि० सं० ११४५ कार्तिक शुक्ल १५ को धन्धुका में, मोढवंश में, हुआ। वि० सं० ११५० में देवचन्द्र सूरि के पास ये जैन साधु की दीक्षा लेकर सर्वशास्त्रों में पाराङ्गत हुए । इनकी बुद्धि बडी तीव्र थी। न्याय, व्याकरण, काव्यालङ्कार, छन्द, कोष, अध्यात्म सभी
१. पर कुमारपाल की भक्ति चन्द्रगुप्त से अधिक थीं इसका कारण यह है कि हेम वन्द्र एक तपस्वी धर्माचार्य भी थे; परन्तु चाणक्य गृहस्थ थे ।
२. मल्लिनाथ की टीकाओं आदि सैकडों ग्रन्थों में "इति हैमः" से इन के कोष के उदाहरण दिखते हैं ।
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