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महाराजा कुमारपाल चौलुक्य
कुमारपाल का सैन्य-बल
अठारह देशों का राज्य कुमारपाल की सत्ता में था। जिनभंडन सूरि ने कुमारपाल की सेना इस प्रकार लिखी है-११०००० घोडे, ११०० हाथी, ५००० रथ, ७२ सामन्त और १८०००० पैदल सेना थी। मेरे पास जा अमुद्रित गुर्जरराज-भूपावली है उस में तो सेना की संख्या बहुत बडी लिखी है जो मानने योग्य नहीं दीखती।
ज्ञान-कला-प्रेम
यद्यपि प्रारम्भ में कुमारपाल सिद्धराज के इतना विद्वान् नहीं था, और मेरे ख्याल से विद्या का उतना व्यसनी भी नहीं, तो भी हेमचन्द्र जैसे सर्व-शास्त्रीय विद्वान् के सङ्ग से उस में विद्या, कला और साहित्य का प्रेम वढता गया । उस के अधिकारियों में कपर्दी मन्त्री बहुत बडा कवि और विद्वान् था । वाग्भट्टादि अच्छे कवि थे । एक बार 'उपमा' की जगह 'औपम्य' शब्द बोलने से कपर्दी मन्त्री ने उपहास किया। राजा को अपनी कमजोरी मालूम हुई तब उसने व्याकरण और काव्य-शास्त्र का काफी अभ्यास किया। उसके बाद वह 'विचारमुख', 'कवि-बान्धव' उपाधियों से प्रसिद्ध हुआ। विद्वानों का स्वागत भी अच्छा करने लगा। देवबोधादि भिन्न भिन्न मत के विद्वान् और संन्यासी उस की राजसभा में अपनी विद्वत्ता दिखलाने आते थे । हेमचन्द्र, रामचन्द्र, श्रीपाल.
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