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महाराजा कुमारपाल चौलुक्य
सिद्धपाल, कपर्दी आदि पण्डितों से उसकी पण्डितसभा ' विश्व-विख्यात हो गई थी। सोलाक नाम के एक संगीतज्ञ के ऊपर प्रसन्न होकर राजा ने उसको अच्छा इनाम दिया था । शिल्प' का भी खूब विकास हुआ था । राजा की प्रार्थना से आचार्य हेमचन्द्र ने 'योगशास्त्र', त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र, और 'वीतराग - स्त्रोत्र की रचना की थी । इसी को राजनीति का ज्ञान कराने के लिए हेमचन्द्र ने अर्हन्नीति ग्रन्थ बनाया जो कौटिल्य अर्थशास्त्र की पद्धति का है । कई ग्रन्थकारों ने इसके राज्य में रह कर ग्रन्थ बनाए हैं । 'दूताङ्गद' नाम का छाया नाटक भी इसी की यात्रा में बना है ।
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गुण
कुमारपाल में खुद काम करने की शक्ति थी । अधिकारियों के ऊपर ही भरोसा रखना यह अच्छा नहीं समझता था । चन्द्रगुप्त सुकुमार और धीरललित था, पर कुमारपाल धीरोदात्त था । इसमें परस्त्री- पराङमुखता और युद्ध -कुशलता सिद्धराज से बहुत चढी - वढी थी, ऐसा प्रबन्ध-चिन्तामणि
१. निवसहमुहावयँसा बिइया गुरुणा अबीयगुणनिवहा । निवसन्ति अणेग बुहाजस्सिं पुहवीस सलहिज्जे ॥ प्रा० द्वयाः सर्ग १ - ४ । इसमें पाटण का उदात्त वर्णन है ।
२. अणहिलपुर के राज्य-काल में शिल्प - विद्या की जितनी उन्नति हुदू थी उतनी किसी दूसरे काल में नहीं हुई । टाइ-राजस्थान
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