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हेम चन्द्राचार्य की दीक्षा कब और कहां हुई
४ कुमारपाल-प्रतिबोध में सोमप्रभसूरि ने खंभात' में चंगदेब को दीक्षित होने का लिखा है।
__५ डॉ. जि. बुहलर (G. BUHLER) ने The Qail of Jain mank Hemchander नाम की जर्मन भाषा के पुस्तक में वि० सं० ११५० में स्तम्भन तीर्थ में दीक्षा का होना लिखा है । अर्वाचीन ग्रन्थकारों ने इन्ही ग्रन्थों के आधार से भिन्न २ मत लिखा है।
इन पांच ग्रन्थों में से दो में हेमचन्द्र की दीक्षा का संवत् वि० सं० ११५० और दो में दीक्षा का स्थान कर्णावती लिखा है, वह युक्त प्रतीत नहीं होता है। इनमें
१ गुणगुरुणा सह गुराणा संपत्ते खभतित्थम्मि । तत्य पयन्नो दिक्ख कुणमाणो सयल संघपरिओस ॥
कु. प्रतिबोध । 'खभात' का नाम प्राकृत में 'खभाइत' और 'थभणपुर' तथा संस्कृत में स्तम्भन तीर्थ लिखा मिला है। "ताम्रलिप्ती' भी खंभात का नाम होना चाहिए । क्योंकि श्रीअजित प्रभसूरिविरचित शान्तिनाथ चरित्र के छठे प्रस्ताव में ताम्रलिप्ती और स्थम्भनतीर्थ समुद्र के किनारे पर हैं,
और प्रर्यावाचक लिखा है । सिद्धराज के राज्य में यह बहुत बडा जिला था। यह अहमदाबाद से दक्षिण में आया है। तीर्थकरूप में 'स्तम्भनकल्प' भी है।
२ इनका रचना-काल क्रमशः इस प्रकार है:-वि• सं० १२४१, १३३४, १३६१, १४०५, १४९२ और बुलर साहब के ग्रन्थ का ईस्वी सन १८८९ ।
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