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महाराजा कुमारपाल चौलुक्य
मन्दिर में उस ने एक शिलालेख देखा, जिसमें निम्न गाथा लिखी थी
पुन्ने वाससहस्से सयम्मिरिसाण नवनवअहिए । होही कुमर नरिन्दो तुह विकमराय सारिच्छो ॥१॥
अर्थात् हे विक्रम ! ११९९ वर्ष के बाद तुम्हारे जैसा कुमारपाल राजा होगा' । कुमारपाल को यह गाथा पढ़ने से साश्चर्यानन्द हुआ और आचार्य हेमचन्द्र के वचन पर विशेष विश्वास हुआ।
वि० सं०२ ११९९ में जब सिद्धराज जयसिंह का स्वर्गवास होने का समाचार कुमारपाल ने सुना, तब वह बड़ी ही शीघ्रता से पाटण में पहुँचकर अपने बहनोई कान्हडदेव के यहाँ जा कर ठहरा, जो सिद्धराज का दस हजार घोड़ों का सेनपति था ।
१. प्रबन्धविन्तामणि के अन्तर्गत विक्रम प्रबन्ध में लिखा है कि जब विक्रम ने सिद्धसेन दिवाकर से पूछा कि मेरे जैसा कोई अन्य राजा होगा ? तब सिद्धसेन ने विक्रम के आगे 'पुन्ने वाससहस्से' गाथा कही थी । दे० विक्रम प्र० पृ० १३ ।
२. टाड-राजस्थान में सिद्धराज का राज्यकाल १२०१ विक्रम तक लिखा है, जो प्रमाण से बाधित है ।
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