________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
६८
www.kobatirth.org
महाराजा कुमारपाल चौलुक्य
गुजरात आने पर भी इन दोनों का सम्बन्ध प्रगाढ़ होता गया। इस तरह हेमचन्द्र सूरि की बढ़ती हुई कीर्ति को कुछ ईर्ष्यालु अन्ध-श्रद्धालु लोग सहन नहीं कर सकते थे । इस का कारण यह था कि जैन साधु के आदर्श उपदेश को राजा समझेगा तो उनकी खुशामद और गपोडों की कीमत कम हो जायगी । इसी लिए कई लोगों ने हेमचन्द्र जैसे पवित्र महात्मा की और जैन धर्म को कई बार निन्दा राजा के आगे की, परन्तु राजा समझदार और हेमचन्द्राचार्य का प्रायः शिष्य था; अतः उसका समाधान हेमचन्द्र से ही पूछ लेता था ।
3
कुमारपाल का धार्मिक जीवन
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
एक दिन कुमारपाल ने हेमचन्द्र से पूछा कि मेरा यश विक्रम की तरह चिरस्थायी होने का उपाय बताइए | आचार्य ने दो उपाय बतलाए । एक तो विक्रम की तरह जगत् को ऋण से मुक्त करने का, और दूसरा सोमनाथ
१. प्रबन्ध - चिन्तामणि, प्रबन्ध - चतुर्विशिकादि ग्रन्थों में ऐसे कई प्रसंग हैं। सिद्धराज के आगे भी इन लोगों ने हेमचन्द्र की निन्दा करने में कमी नहीं की। इसी झूठी निन्दा के आधार पर अथवा अपनी कपोलकल्पित कल्पनाओं से आज भी कुछ लोग इस आचार्य और जैन धर्म की निन्दा करने की धृष्टता करते हैं । इस में श्रीयुत के० एम० मुंशी और झमोर के लेखक मुख्य हैं । बीसवीं सदी के उदार जमाने में ऐसा काम करना किसी तरह से योग्य नहीं है ।
For Private and Personal Use Only