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महाराजा कुमारपाल चौलुक्य
महादेव के मन्दिर का जीर्णोद्धार कराने का । जगत्प्रसिद्ध सोमनाथ का मन्दिर उस वक्त जीर्ण-शीर्ण हो गया था, ऐसा प्रबन्धचिन्तामणिकार लिखते हैं । कुमारपाल को इस निष्पक्ष सलाह से हेमचन्द्र के ऊपर बहुत श्रद्धा हुई । उस ने सोमनाथ का जीर्णोद्वार शुरू करवाया | जब तक सोमनाथ के मन्दिर पर ध्वजारोपण न हो तब तक हेमचन्द्र के कहने से राजा ने मांस-मद्य का त्याग किया | दो वर्ष में सब कार्य हो गया; ध्वजा चढ़ाई गई । राजा ने हेमचन्द्र से महादेव की स्तुति करने की प्रार्थना की। आचार्य ने ख़ुशी से नई स्तुति बना कर कही । राजा बहुत प्रसन्न हुआ । मन्दिर में साक्षात् शिवजी ने आकर दर्शन दिए । कुमारपाल ने वहां पर यावज्जीवन हेमचन्द्र के उपदेश से मांस का त्याग किया ।
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१. 'मिराते - अहमदी', 'आईन-इ-अकबरी' प्रभृति - मुसलमानी लेखकों के ग्रन्थों के आधार पर फार्बस साहब कहते हैं कि उस वक्त तक महमुद सोमनाथ मन्दिर पर आक्रमण कर चुका था । सम्भव है, इसी से कुमारपाल ने जीर्णोद्धार करवाया हो । यह मन्दिर प्रभासपाटण में है ।
२. सोमनाथ की प्रतिष्ठा का प्रसंग विस्तार से जैन ग्रन्थों में मिलता है। हेमचन्द्र सूरि ने स्तुति की, जिसका एक श्लोक यह है-
भवबीजाङ्कुरजनना रागाद्याः क्षयमुपागता यस्य । ब्रह्मा वा विष्णुर्वा हरो जिनो का नमस्त ॥
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प्र० बि० १२९ ।
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