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महाराजा कुमारपाल चौलुक्य
आचार्य और सम्राट की मुलाकात
उस वक्त कुमारपाल मालवे में था । जहाँ उसका डेरा था, वहाँ पैदल चल कर हेमचन्द्राचार्य पहुँचे । आचार्य ने उदयन द्वारा राजा का समाचार जाना और राजो को पूर्वोपकार का उदयन द्वारा स्मरण करवाया । राजा को सब याद आया । उसने आचार्य का बडे चाव से सत्कार किया और कहा कि भगवन्', मैं धीरे-धीरे आप की सभी आज्ञाओं का पालन करूँगा, इस के लिए मैं आपका संग चाहता हूँ । उस के बाद भूपाल की प्रार्थना से आचार्य हमेशा कुमारपाल के पास जा कर धर्म, नीति
और राजधर्म समझाने लगे। आचार्य के चारित्र्य और पाण्डित्य का असर कुमारपाल पर बढता गया ।
१. भवदुक्तं करिष्येऽहं सर्वमेव शनैः शनैः ।
कामयऽहं परं सङ्ग निधेरिव तव प्रभो ! ॥ 'कुमारपाल-प्रतिबोध' में सोमप्रभसूरि लिखते हैं--
राज्यादि सुख को देने वाले सच्चे धर्म को जानने की कुमार- पाल की आकांक्षा हुई। यज्ञादि-हिंसा-धर्मोपदेश से उस की जिज्ञासा
पूरी नहीं हुई । इसलिये वह धर्म का सच्चा तत्त्व जानने का अभिलाषी था। उस के मन्त्री वाग्भटदेव ने राजा को श्रीहेमचन्द्राचार्य का परिचय दिया । राजा ने पहली बार यहीं हेमचन्द्राचार्य से मुलाकात की और पीछे से सम्बन्ध बढा ।
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