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महाराजा कुमारपाल चौलुक्य
(५) अपने राज्य में चौदह वर्ष तक अहिंसा का काफी प्रचार किया ।
(६) कुमारपाल ने कई शैव मन्दिर, तालाब, कुएँ, दानशाला और १४४४ जैन मन्दिर बनवाए । राज्य के खर्च से जो मन्दिर बने थे उन का नाम प्राय- "कुमार या कुंवर विहार" होता था । अभी तक दूर-दूर तक इन के मन्दिर मिलते हैं । एक मन्दिर जावालीपुर (जालोर) मारवाड में, जो जोधपुर स्टेट में है, सुवर्णगिरि दुर्ग पर अभी मौजूद है, जिस पर यह शिलालेख है
ओं ॥ संवत् १२२१ श्रीजावालिपुरीयकांचनगिरिगढस्योपरि प्रभुश्रीहेममूरिप्रबोधितगुर्जरधराधीश्वरपरमाहतचौल्लक्यमहाराजाधिराजश्रीकुमारपालदेवकारिते श्रीपार्श्वनाथसत्क..........विंचसहितश्रीकुंवरविहाराभिधाने जैनचैत्ये.......। प्राचीनजैनलेखसंग्रहशिलालेख, नं. ३५२ ।।
१. कुमारपाल के आध्यात्मिक जीवन का परिचय देने वाला "मोहपराजय” नाटक बहुत ही अच्छा है । यह ग्रन्थ "प्रबोधचन्द्रोदय" की पद्धति का है । परन्तु इस में किसी धर्म विशेष का खण्डन नहीं है। प्रो० पीटर्सन (Peterson) ने डेक्कन कॉलेज में व्याख्यान देते हुए कहा था कि यह ग्रन्थ क्रिश्चियन लोगों के 'पिलग्रिम्स प्राग्रेस' पुस्तक जैसा है।
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