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महाराजा कुमारपाल चौलुक्य
(१) आचार्य हेमचन्द्र के उपदेश से कुमारपाल ने लावारिस का धन लेना छोड दिया; जिस की आमदनी एक साल में राज्य भर में ७२००००० बहत्तर लाख रुपयों की थी। इस त्याग की हेमचन्द्र ने इस प्रकार प्रशंसा की है
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अपुत्राणां धनं गृह्णन् पुत्रो भवति पार्थिवः त्वं तु सतोषतो मुञ्चन् सत्यं राजपितामहः ॥ प्रबन्ध चिन्तामणि
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(२) कुमारपाल ने शत्रुञ्जय नामक जैन तीर्थ का संघ निकाला |
(३) तारङ्गा नामक जैन तीर्थ में श्री अजितानाथ का भव्य मन्दिर बनवाया ।
(४) मांस, शराब, परस्त्री, वेश्या प्रभृति सातों व्यसनों का त्याग किया और राज्य में भी यथाशक्य त्याग करवाया । यज्ञ तथा देवियों के निमित्त हिंसा बंद करवाई ।
१. बहुत लोगों को एकत्र करके अपने खर्च से जो लोग तीर्थो में यात्रा करने जाते हैं, उस को जैन लोग संघ कहते हैं ; और ले जाने वाले को संघपति । कुमारपाल के इस संघ में हेमचन्द्र सूरि, वादिदेव सूरि, धर्मसूरि, ७२ सामंत, श्रीपाल, ऑभड, पं० सिद्धपाल, राणा प्रह्लादन, राजा का दौहित्र प्रतापमल्ल, रानी भोपालदेवी, राजपुत्री लीलू प्रभुति एक खाख मनुष्य थे, ऐसा राजशेखरसूरि " प्रबन्ध कोष" के हेमचन्द्राचार्य - प्रबन्ध में लिखते हैं ।
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