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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महाराजा कुमारपाल चौलुक्य आचार्य और सम्राट की मुलाकात उस वक्त कुमारपाल मालवे में था । जहाँ उसका डेरा था, वहाँ पैदल चल कर हेमचन्द्राचार्य पहुँचे । आचार्य ने उदयन द्वारा राजा का समाचार जाना और राजो को पूर्वोपकार का उदयन द्वारा स्मरण करवाया । राजा को सब याद आया । उसने आचार्य का बडे चाव से सत्कार किया और कहा कि भगवन्', मैं धीरे-धीरे आप की सभी आज्ञाओं का पालन करूँगा, इस के लिए मैं आपका संग चाहता हूँ । उस के बाद भूपाल की प्रार्थना से आचार्य हमेशा कुमारपाल के पास जा कर धर्म, नीति और राजधर्म समझाने लगे। आचार्य के चारित्र्य और पाण्डित्य का असर कुमारपाल पर बढता गया । १. भवदुक्तं करिष्येऽहं सर्वमेव शनैः शनैः । कामयऽहं परं सङ्ग निधेरिव तव प्रभो ! ॥ 'कुमारपाल-प्रतिबोध' में सोमप्रभसूरि लिखते हैं-- राज्यादि सुख को देने वाले सच्चे धर्म को जानने की कुमार- पाल की आकांक्षा हुई। यज्ञादि-हिंसा-धर्मोपदेश से उस की जिज्ञासा पूरी नहीं हुई । इसलिये वह धर्म का सच्चा तत्त्व जानने का अभिलाषी था। उस के मन्त्री वाग्भटदेव ने राजा को श्रीहेमचन्द्राचार्य का परिचय दिया । राजा ने पहली बार यहीं हेमचन्द्राचार्य से मुलाकात की और पीछे से सम्बन्ध बढा । For Private and Personal Use Only
SR No.020374
Book TitleHimanshuvijayjina Lekho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHimanshuvijay, Vidyavijay
PublisherVijaydharmsuri Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages597
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Gujarati
File Size18 MB
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