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महाराजा कुमारपाल चौलुक्य
समारोहपूर्वक राजा सलैन्य पाटण आया और आन्न की कन्या से विवाह किया ।
बल्लाल२ की तरफ जो कुमारपाल की सेना भेजी हुई थी वह भी अन्ततोगत्वा विजयी हुई। उस के सेनानियों ने बल्लाल को मार डाला, ऐसा वृत्तान्त राजा कुमारपाल ने दूत से सुना । यह सुन कर वह बडा प्रसन्न हुआ और दूत को इनाम मे शिरपाव दिया ।
इस प्रकार जो दुश्मन खडे हुइ थे उन का सम्पूर्ण रीत्या दमन कर के राजा स्वस्थ हुआ ।
राज्य मिलने के बाद राज्य का काम कुमारपाल खुद ही करने लगा । मन्त्रियों का भरोसा कम रखता था, इसलिए कुछ मन्त्री आदि कलहकारों ने कुमारपाल का षडयन्त्र रचा, परन्तु आप्त सेवकों से मालूम होने के बाद कुमारपाल ने उन सब को कड़ी सजाएँ दी और मार डाला ।
जब आचार्य हेमवन्द्र को यह मालूम हुआ कि कुमारपाल राजा होकर विजयी हुआ है, तब वे अपने दिल में प्रसन्न हुए। अपने शिष्य का पुरुषार्थ जानकर भला कौन खुश न होगा ?
१. हेमचन्द्राचार्य का द्वयाश्रय काव्य, १९वा सर्ग । २. अवन्ती का राजा। ३. द्वयाश्रय काव्य, सर्ग १६ ।
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